वैदिक धर्म समर्पित आर्य कैसे होते हैं,
लेखराम श्रद्धानन्द गुरुदत्त जैसे होते हैं।।
तर्ज़ – नील गगन पर उड़ते बादल।
कथनी व करनी में कोई भेद नहीं होता,
निज कर्त्तव्य निभाते दिल में खेद नहीं होता,
जैसे अन्दर हैं बाहर भी वैसे होते हैं,
लेखराम श्रद्धानन्द गुरुदत्त जैसे होते हैं।।
रहती है सच्चाई ऐसे इनके जीवन में,
चेहरा साफ़ नज़र आता है जैसे दर्पण में,
जैसे एक रुपये में सौ पैसे होते हैं,
लेखराम श्रद्धानन्द गुरुदत्त जैसे होते हैं।।
पर उपकार की ख़ातिर सारा जीवन दे जायें,
तन मन धन से जन जन की हरते हैं पीड़ायें,
दयानन्द के सच्चे सैनिक ऐसे होते हैं,
लेखराम श्रद्धानन्द गुरुदत्त जैसे होते हैं।।
कठिन परीक्षा की अग्नि में आँच नहीं आती,
राहों में विपरीत दशा भी रोक नहीं पाती,
‘पथिक’ कहीं भी हों जैसे के तैसे होते हैं,
लेखराम श्रद्धानन्द गुरुदत्त जैसे होते हैं।।
वैदिक धर्म समर्पित आर्य कैसे होते हैं,
लेखराम श्रद्धानन्द गुरुदत्त जैसे होते हैं।।
गायक – ध्रुव कुमार आर्य।
लेखक – पं० सत्यपाल “पथिक”
प्रेषक – सौरभ आर्य सुमन
+916206533856