विश्वकर्मा स्वामी,
दोहा – विष्णु से विश्वकर्मा भया,
प्रभु दिनों शिल्प कला रो ज्ञान,
आंखे मूंद कला दर्शाई,
जा रो अजर अमर है नाम।
विश्वकर्मा स्वामी,
नारायण अंतर्यामी,
शिल्प कला जग में नाम हो।।
तर्ज – गोरी है कलाइयां।
विष्णु आज्ञा से दाता सृष्टि रचाई,
सृष्टि तारण के कारण ध्यान लगाई,
नारायण लीला दिखाया,
निराला रूप बणाया,
विश्वकर्मा नाम धरा दिया,
विश्वकर्मां स्वामी,
नारायण अंतर्यामी,
शिल्प कला जग में नाम हो।।
देव दानव मिल करता लड़ाई,
राजा विदुर को जब अर्जी सुनाई,
असुर को आप हराया,
इंदर जब यू हर्षाया,
अश्वो को आप हराया,
सुन्दर भवन बनाविया,
विश्वकर्मां स्वामी,
नारायण अंतर्यामी,
शिल्प कला जग में नाम हो।।
भृगु बोले ये नगरी किसने बसाई,
विश्वकर्मा जी का नाम बताइ,
भृगु जी बुलाया,
विश्वकर्मा जी आया,
सुंदर भवन दिखा दिया,
विश्वकर्मां स्वामी,
नारायण अंतर्यामी,
शिल्प कला जग में नाम हो।।
चार भुजा धर दर्शन दीना,
ब्रह्मा जी का रूप धर लीना,
कमंडल पुस्तक दोइ,
मुकुट रत्ना को सोई,
तीन नेत्र दिखलाविया,
विश्वकर्मां स्वामी,
नारायण अंतर्यामी,
शिल्प कला जग में नाम हो।।
दर्शन करने को दौड़े नर नारी,
तेरस दिवस को भीड अपारी,
चरण में वंदन कीना,
दया प्रभु की लीना,
ऋषि मुनि हरसाविया,
विश्वकर्मां स्वामी,
नारायण अंतर्यामी,
शिल्प कला जग में नाम हो।।
पृथ्वी वायु जल अग्नि आकाशा,
पांच तत्वों में विश्वकर्मा समाता,
यू वेद बतावे,
थाने शिव ब्रह्मा ध्यावे,
‘मोहन झाला’ गुण तेरा गाविया,
विश्वकर्मां स्वामी,
नारायण अंतर्यामी,
शिल्प कला जग में नाम हो।।
विश्वकर्मा स्वामी,
नारायण अंतर्यामी,
शिल्प कला जग में नाम हो।।
गायक – सम्पत जी उपाध्याय।
प्रेषक – महावीर दादोली
7014219558