वो मनख जमारो कई काम को,
जी में बिल्कुल प्यार नहीं,
वो तंदूरो कई काम को,
जिमे एक भी तार नहीं।।
पर घर पग तो कदी न देनो,
जीण घर में मनवार नहीं,
बड़ी रेल में नहीं बैठनो,
जिके इंजन लार नहीं,
वो मनख जमारो कईं काम को,
जी में बिल्कुल प्यार नहीं,
वो तंदूरो कई काम को,
जिमे एक भी तार नहीं।।
वो म्यान भी कहीं काम की,
जिमें एक तलवार नहीं,
दुख परायो जाने आपनो,
उन जैसों दिलदार नहीं,
जी में बिल्कुल प्यार नहीं,
वो तंदूरो कई काम को,
जिमे एक भी तार नहीं।।
वो चकु भी कहीं काम को,
जीमें बिल्कुल धार,
नहीं अस्यो धंधौ भी कहीं काम को,
जिमें कोई सार नहीं,
जी में बिल्कुल प्यार नहीं,
वो तंदूरो कई काम को,
जिमे एक भी तार नहीं।।
केवे कालू सुनलो रे भाया,
बिन भक्ति कोई पार नहीं,
कई आया और कई चला गया,
वाका कोई समाचार नहीं,
जी में बिल्कुल प्यार नहीं,
वो तंदूरो कई काम को,
जिमे एक भी तार नहीं।।
वो मनख जमारो कई काम को,
जी में बिल्कुल प्यार नहीं,
वो तंदूरो कई काम को,
जिमे एक भी तार नहीं।।
प्रेषक – मदन बैरवा।
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