वृन्दावन प्यारा है,
जीने का सहारा है,
इन प्यारी प्यारी कुंजो में,
रहता मेरा प्यारा है।।
मेरी करुणा मई श्यामा,
ब्रज की ठकुरानी है,
बहे करुणा की धारा ज्यूँ,
यमुना जी का पानी है,
यमुना जी का पानी है,
इन चरणों की रज लेकर,
बिगड़ी को बनाना है,
इन प्यारी प्यारी कुंजो में,
रहता मेरा प्यारा है।।
करूँ सेवा महलन की,
इन बिन कैसे रह पाऊँ,
तेरे चरणों को रख सीने,
आँसुओ से नहलाऊं,
आँसुओ से नहलाऊं,
सजदा तेरी चौखट पर,
यही दिल को लगाना है,
इन प्यारी प्यारी कुंजो में,
रहता मेरा प्यारा है।।
जन्मों की प्यासी हूँ,
तेरी ही मैं दासी हूँ,
मेरी नैया डौल रही,
अब तेरे सहारे हूँ,
अब तेरे सहारे हूँ,
‘गोपाल’ शरण तेरी,
नही कोई ठिकाना है,
इन प्यारी प्यारी कुंजो में,
रहता मेरा प्यारा है।।
सुने मन आँगन में,
इक बार तो आ जाओ,
इक बार तो हे लाढ़ो,
बस अपनी कह जाओ,
बस अपनी कह जाओ,
सौगंध तुम्हे मेरी,
नहीं कोई बहाना है,
इन प्यारी प्यारी कुंजो में,
रहता मेरा प्यारा है।।
वृन्दावन प्यारा है,
जीने का सहारा है,
इन प्यारी प्यारी कुंजो में,
रहता मेरा प्यारा है।।
प्रेषक – राष्ट्रीय संत गोपाल कृष्ण ठाकुर जी
9411913887