वो भोलानाथ कैलाशी,
ज़माने से निराला है,
गले में हार फूलों की जगह,
नागों की माला है।।
तेरे दरबार से शंकर,
कोई खाली नहीं जाता,
है दुश्मन को मिटाने के लिए,
त्रिशूल आला है,
वो भोला नाथ कैलाशी,
ज़माने से निराला है।।
बिना सोचे भसम कंगन,
भस्मासुर को दे डाला,
वह जिसका नाम है भोला,
बड़ा ही भोला भाला है,
वो भोला नाथ कैलाशी,
ज़माने से निराला है।।
लगा त्रिपुंड माथे पर,
सजा है हाथ में डमरू,
जटों में गंग की धारा
मुकुट चंदा उजाला है,
वो भोला नाथ कैलाशी,
ज़माने से निराला है।।
है गौरा साथ में उनके,
बड़े दानी है अविनाशी,
‘पदम्’ वह बेसहारों को,
सहारा देने वाला है,
वो भोला नाथ कैलाशी,
ज़माने से निराला है।।
वो भोलानाथ कैलाशी,
ज़माने से निराला है,
गले में हार फूलों की जगह,
नागों की माला है।।
लेखक / प्रेषक – डालचंद कुशवाह “पदम”
9827624524