ये दुनिया सारी मतलब की,
है पैसों की है रुपयों की,
रुपयों के पीछे,
रुपयों के पीछे लडह पड़ी,
भगवत से भाया दुरह खड़ी।।
जो रुपया वाला लोभिड़ा है,
वे दान उगाई पिछोड़ा है,
वो कैरी खाजा हड़ी-पड़ी,
भगवत से भाया दुरह खड़ी।।
जो सुफर फेन बगुला ज्युं घुमे,
घर में अन्न को दानों कोने,
वो फिल्मा देखे बड़ी-बड़ी,
भगवत से भाया दुरह खड़ी।।
जो लाख रुपया होदा पाछे,
झुठ बोलियां कोनी ताछे,
वो नित बिगाड़े उसी घड़ी,
भगवत से भाया दुरह खड़ी।।
राम नाम तो कोनी भावे,
बिन बुलाए जिमण जावे,
वे ढोगी खावे खीर पड़ी,
भगवत से भाया दुरह खड़ी।।
किशना चरणां ‘रतन’ अरजे,
सही संत ने कोई ना बणजे,
घणी करें तो रेपट पड़ी,
भगवत से भाया दुरह खड़ी।।
ये दुनिया सारी मतलब की,
है पैसों की है रुपयों की,
रुपयों के पीछे,
रुपयों के पीछे लडह पड़ी,
भगवत से भाया दुरह खड़ी।।
गायक / रचना – पं. रतनलाल प्रजापति।
निर्देशक – किशनलाल जी प्रजापत।