ये फूलों के हार,
ये गजरे बेशुमार,
ये किसने किया श्रृंगार,
लागे इतना प्यारा तू,
लागे इतना प्यारा तू।।
तर्ज – ना कजरे की धार।
तेरे केश है घुंघराले,
तेरे नैन ये कजरारे,
तेरा रूप ऐसा दमके,
ज्यूँ चाँद और सितारे,
पल भर ना हटे नज़रे,
मैं देखूं बारम्बार।
ये फुलो के हार,
ये गजरे बेशुमार,
ये किसने किया श्रृंगार,
लागे इतना प्यारा तू,
लागे इतना प्यारा तू।।
कानो में कुंडल प्यारे,
गल में वैजन्ती माला,
तेरे होंठ लागे जैसे,
मधु से भरा हो प्याला,
देखे जो एक नजर वो,
खो देता है करार।
ये फुलो के हार,
ये गजरे बेशुमार,
ये किसने किया श्रृंगार,
लागे इतना प्यारा तू,
लागे इतना प्यारा तू।।
श्रृंगार तेरा हटके,
बांकी अदा की लटके,
ये सांवली सी सूरत,
जो देख ले वो भटके,
नैनो में बस गया तू,
ओ मेरे लखदातार।
ये फुलो के हार,
ये गजरे बेशुमार,
ये किसने किया श्रृंगार,
लागे इतना प्यारा तू,
लागे इतना प्यारा तू।।
दरबार महके तेरा,
श्रृंगार महके तेरा,
मदमस्त हो दीवाना,
ये ‘हर्ष’ बहके तेरा,
आँखों में छा गया है,
तेरे रूप का खुमार।
ये फुलो के हार,
ये गजरे बेशुमार,
ये किसने किया श्रृंगार,
लागे इतना प्यारा तू,
लागे इतना प्यारा तू।।
ये फूलों के हार,
ये गजरे बेशुमार,
ये किसने किया श्रृंगार,
लागे इतना प्यारा तू,
लागे इतना प्यारा तू।।
स्वर – स्वाति अग्रवाल।