ये ग्यारस बिन तेरे दर्शन,
क्यों बाबा बीत जाती है,
क्यों बाबा बीत जाती है,
मुझे दिन रात खाटू की,
ओ बाबा याद आती है,
तुम्हारी याद आती है।।
तर्ज – बहारों फूल बरसाओ।
है सूना मन तेरे दर्शन,
के बिन बाबा करूं मैं क्या,
तू ही आजा मिलन को अब,
मैं तुझसे और मांगू क्या,
हैं रोती याद में तेरी,
ये आँखे भर सी जाती हैं,
तुम्हारी याद आती है।।
तेरे मन्दिर के बाहर का,
नजारा याद आता है,
कोई रोता है मिलने को,
तो कोई मुस्कुराता है,
महक माटी की खाटू की,
मेरी सांसो में आती है,
मेरी सांसो में आती है।।
तू कर ऐसा जतन बाबा,
समय जल्दी ये कट जाए,
तेरे दरबार में आकर,
तेरे भजनों को हम गायें,
तुम्हारा ‘स्नेह’ पाने की,
कसक बढ़ती ही जाती है,
कसक बढ़ती ही जाती है।।
ये ग्यारस बिन तेरे दर्शन,
क्यों बाबा बीत जाती है,
क्यों बाबा बीत जाती है,
मुझे दिन रात खाटू की,
ओ बाबा याद आती है,
तुम्हारी याद आती है।।
गायक – अंशुल बंसल।
लेखक / प्रेषक – अमित बंसल जी ‘स्नेह’
9899509023