ये है मयण रेहा की कथा,
मयण रेहा की कथा,
सतियो है सोलह सती,
जिसमे है मयण सती,
शील व्रत को धारके,
जो बनी है महासती,
शब्द उदघोषित हुआ,
जब गुरु मुख से सर्वदा,
शब्द उदघोषित हुआ।।
तर्ज – अथ श्री महाभारत कथा।
दोहा – देव गुरु की कृपा से,
लिखी ये अमिट कहानी,
श्री कांतिसूरी जी की कलम से,
गुरु मनोज्ञ सूरी जी की जुबानी।
आ …आ….आ…
शुरू हो रही कहानी ..आ..आ..
गुरुवर की ये जुबानी,
सुनलो ओ भवि प्राणी,
मयण रेहा की कहानी,
बड़ी ही अनुपम लीला,
सत्य है ये कहानी,
आओ भाव से सुनले,
मयण रेहा की कहानी,
मयण रेहा मयण रेहा।।
प्रेरणा – खरतरगच्छाचार्य श्री जिन मनोज्ञ सूरीश्वर म.सा.
गायक / रचनाकार – दिलीप सिंह सिसोदिया ‘दिलबर’।
नागदा जक्शन म.प्र. 9907023365