ये नैया मेरी बाबा कर दो किनारे,
चले आओ मोहन है तेरे सहारे।।
तर्ज – लगी आज सावन की फिर वो।
पुरानी ये कश्ती है दूर किनारा,
तेरे निर्बल भगतो का तु है सहारा,
भव से हमें अब बचालो कन्हैया,
ना पतवार हाथों से छुटे हमारे,
चले आओ मोहन है तेरे सहारे,
ये नैया मेरी बाबा कर दो किनारे।।
जो डोली मेरी नाव तुमने संभाला,
तेरी ही दया से हैं घर में उजाला,
ये परिवार मेरा है तेरे हवाले,
तुझे ही पुकारा है जब जब है हारे,
चले आओ मोहन है तेरे सहारे,
ये नैया मेरी बाबा कर दो किनारे।।
मेरे श्याम सिर पर मेरे हाथ रखा दो,
मेरे सारे पापों को तुम माफ कर दो,
शरण में पडे हैं तुम्हारी ओ मोहन,
इस “दीपक” की बिगड़ी को तुम्ही सवारे,
चले आओ मोहन है तेरे सहारे,
ये नैया मेरी बाबा कर दो किनारे।।
ये नैया मेरी बाबा कर दो किनारे,
चले आओ मोहन है तेरे सहारे।।
– प्रेषक एवं लेखक –
अजय कुमार शर्मा ‘दीपक’
9661177001