यूँ ही नहीं ऐसे खाटू में,
दीनो का मेला लगता है,
जग छोड़े जिसे मेरा बाबा उसे,
पलकों पे बिठाये रखता है,
यूँ ही नहीं ऐसे खाटु में,
खाटु में, खाटु में, खाटु में।।
तर्ज – घूंघट की आड़ से।
हर सवालों को मिलता जवाब अपना,
आँख दर पे संजोती है ख्वाब अपना,
शब्दों में श्याम वर्णन बयां क्या करूँ,
इनकी करुणा तो है कल्पना से परे,
अंधकार को भी दर पे,
आके मिलती रौशनी, हो,
हारों बेचारों पे हरदम ही,
मेरा श्याम निगाहें रखता है,
जग छोड़े जिसे मेरा बाबा उसे,
पलकों पे बिठाये रखता है,
यूँ ही नहीं ऐसे खाटु में,
खाटु में, खाटु में, खाटु में।।
न्याय होता ये सच्ची अदालत है,
दीनो की श्याम करता हिफाज़त है,
सच्चे भावों भरी गर इबादत है,
पल में दुःख ग़म से मिलती ज़मानत है,
आंसुओं को मिलती यहाँ,
खुशियों से भरी हंसी, हो,
सोता नहीं वो नसीबा जो,
इनकी कृपा से जगता है,
जग छोड़े जिसे मेरा बाबा उसे,
पलकों पे बिठाये रखता है,
यूँ ही नहीं ऐसे खाटु में,
खाटु में, खाटु में, खाटु में।।
उसकी उड़ाने क्या कोई रोके,
जिसको उड़ाए श्याम के झोंके,
जग की ज़रूरत उसको नहीं है,
रहता है जो मेरे श्याम का होके,
गिरता नहीं फिर से ‘गोलू’ जो,
बाबा के हाथों संभालता है,
जग छोड़े जिसे मेरा बाबा उसे,
पलकों पे बिठाये रखता है,
यूँ ही नहीं ऐसे खाटु में,
खाटु में, खाटु में, खाटु में।।
यूँ ही नहीं ऐसे खाटू में,
दीनो का मेला लगता है,
जग छोड़े जिसे मेरा बाबा उसे,
पलकों पे बिठाये रखता है,
यूँ ही नहीं ऐसे खाटु में,
खाटु में, खाटु में, खाटु में।।
Singer – Abhishek Nama